सिमुलतला : जब समाज किसी नारी को अबला समझ उसके नेतृत्व क्षमता पर कयास लगाने लगती है तब रेशमा देवी जैसी औरतें अपनी लगन, मेहनत के बल पर उन कयासों का मुंहतोड़ जवाब देती है। रेशमा देवी महादलित महिला के आरक्षित कनौदी पंचायत के वार्ड 11 से निर्वाचित सदस्य हैं। शिक्षा के नाम पर रेशमा को केवल अपना नाम लिखना आता है लेकिन अपने बुलंद हौसलों के सामने उसे अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। रेशमा के पास भले ही साक्षर होने का सिर्फ एक प्रमाण है, लेकिन आत्मविश्वास का टानिक कूट-कूटकर भरा है। पति चुरामन दास राजमिस्त्री है और बच्चे पिता के सहयोगी।
परिस्थितियों को ताड़ आगे बढ़ती रही रेशमा। लेकिन सफर तो अभी प्रारंभ ही हुआ था। मुश्किलें बार-बार मुंह उठाए दस्तक दे रही थी। वार्ड की बैठकों से लेकर विभिन्न पंचायती कार्यो में कई प्रकार की दिक्कतों से रु-ब-रु हुई। लोगों ने यहां तक कह डाला रेशमा गृहणी हैं गृहणी ही रहें। पंचायत के कार्यो की समझ इसे कहां। पंचायत की बैठकें और अन्य विकास कार्य आदि इनके पति करेंगे लेकिन उसने हार नहीं मानी। आज रेशमा पंचायत जनप्रतिनिधि के रुप में पूरी तरह ढल गई है। अब तक रेशमा ने 40 लोगों का लेबर कार्ड बनवाया है जिसमें 25 लोगों को काम भी मिला है। सात बच्चों का जन्म प्रमाण पत्र, चार लोगों को मृत्यु प्रमाण पत्र, मुखिया व अन्य पदाधिकारियों से संपर्क कर बनाई है। बिहार सरकार के 50 प्रतिशत महिला पंचायती आरक्षण के वैतरणी में चढ़ रेशमा ने अपने समाज के साथ-साथ आमलोगों के लिए एक ऐसी पहचान बन गई। जिसके लिए अनायास मन से निकल पड़ती है। जच्बा हो गर कुछ करने की, कोई दहलीज रोक न पाए। मानव के इन कृतियों का, इतिहास गवाह बन जाए
रेशमा देवी जी के जज्बे को देखकर निष्क्रिय पंचायत जन प्रतिनिधियों को तो चुल्लू भर पानी में डूब मारना चाहिए
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