अंग साहित्य में नई पहचान बनाने वाले 67 वर्षीय कवि सुरेन्द्र प्रसाद सिंह यूं तो किसी परिचय का मोहताज नहीं लेकिन बहुत कम लोग ही यह जानते होंगे कि वे सादगी व संसाधन हीनता के बीच समन्वय स्थापित कर अपनी रचनाओं में ओजस्वी भावनाओं का संचार कैसे कर पाते हैं। संयोग देखिए 15 अगस्त 1947 को खैरा प्रखंड के केवाल परियत्ता में जन्मे कवि सुरेन्द्र ने युवावस्था में 'तूफान' नामक काव्य की रचना की। यह रचना व्यवस्थाओं को बदहाली को बयां करने वाली ही नहीं थी अपितु उक्त त्रासदी से मुक्ति के प्रयासों पर केन्द्रित थी। तकरीबन 25 साल पूर्व कवि सुरेन्द्र की अंगिका में प्रकाशित 'गुड़गुड़ी' नामक कृति तब पाठकों की जुबान पर रहती थी। राष्ट्र के नाम संदेश नामक पुस्तक की रचना भी इन्होंने उसी समय की थी। कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन व संचालन की जिम्मेवारी इन्होंने बखूबी संभाली। भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर लिखी गई साढ़े चार सौ पंक्तियों की कविता फिलहाल सुर्खियों में है। 'भले व्यस्तता के चलते हो जाता नर दोषी है पर हिन्द के हाल पर जायज नहीं खामोशी है। उसको तो चिंता रहती है अपने कहे वचन की जैसे मां को दिए वचन पर कर्ण ध्यान देता था रण में अनुजों पर कब्जा कर प्राणदान देता था। '
लेकिन संसाधनहीनता के कारण अंगिका के इस प्रखर कवि को आगे बढ़ने का मौका मयस्सर नहीं हो पाया। अंग साहित्य के सरस्वती पुत्र की 'व्यक्ति राज योजना' की अवधारणा पर यदि सरकार गंभीरता से काम करे तो हिन्दुस्तान की बहुतेरी समस्याओं का स्वत: स्र्फूत समाधान निकल आएगा। कवि की ऐसी ही सोच है। नजारे, अंतिम बार, व सुगना जैसी रचनाएं बतौर पांडुलिपि पड़ी हुई है। अर्थाभाव के कारण उन कृतियों का प्रकाशन संभव नहीं हो पा रहा है। इन सबसे इतर कवि सुरेन्द्र ने अपनी रचनाओं से अंगिका को और भी समृद्ध किया है। आवश्यकता है उनकी रचनाओं को क्षेत्रवासियों तक पहं़चाने की।