Wednesday 26 October 2011

माता के जयकारा से गुंजायमान हुआ इलाका



जमुई, जागरण प्रतिनिधि : हर वर्ष की भांति इस बार भी मलयपुर स्थित मां कालिका मंदिर में रौद्ररुपा मां काली की पूजा-अर्चना धूमधाम से की जा रही है। मंगलवार की देर रात पूजा-अर्चना के साथ ही माता के दरबार का पट श्रद्धालुओं के लिए खुला। और माता की जयकारा से इलाका गुंजायमान हो उठा। पट खुलते ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु का तांता लगा रहा। मंगलवार की देर रात वेदाचार्यो के मंत्रोच्चारण के बीच मां कालिका की पूजा-अर्चना की गई। दीपावली के मौके पर मां कालिका की पूजा-अर्चना को लेकर दुधिया रंग में नहाए भव्य मंदिर को हाईटेक रौशनी से सजाया गया है। साथ ही कई आकर्षक सजावट भी किए गए हैं जो दर्शन को आने वाले श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केन्द्र होगा। इस अवसर पर मंदिर के सटे इलाके में मेला लगा है जिसमें अन्य प्रांतों के खाद्य पदार्थो के साथ ही सौंदर्य प्रसाधन के स्टाल लगाए गए हैं। श्रद्धालुओं को कठिनाई न हो इस बाबत जमुई-मलयपुर मुख्य मार्ग पर रौशनी की व्यवस्था भी की गई है। तीन दिनों तक लगने वाले मेले को लेकर प्रशासन भी सजग है।

एतिहासिक धरोहर से परिपूर्ण है जमुई

जमुई, जागरण प्रतिनिधि : प्राचीन अंग जनपद में स्थित जमुई जिला का संपूर्ण क्षेत्र पुरातात्विक एवं सांस्कृतिक सम्पदा से परिपूर्ण है। प्राप्त पुरातात्विक अवशेष उसके गौरवमय अतीत का स्मरण कराते हैं। जमुई की प्राचीनता महाभारत काल से ही प्रारंभ होती है। महाभारत में जमुई को गिद्धौर प्रदेश को पवित्र शैवतीर्थ कहा गया है। जमुई जिला अंतर्गत काकंदी नामक ग्राम जैन धर्म के नवें तीर्थकर सुविधिनाथ के जन्म स्थान, दीक्षा एवं ज्ञान प्राप्ति स्थल के रुप में उल्लिखित है। जमुई जिला अंतर्गत लछुआड़ के निकट स्थित क्षत्रिय कुंडग्राम एक मान्यता के अनुसार महावीर का जन्मस्थान कहा जाता है। जमुई जिला का इंदपैगढ़ पाल शासकों का कार्यस्थल होने का प्रमाण लिए गौरवपूर्ण अध्याय की कथा कह रहा है। इन्दपैगढ़ से प्राप्त बौद्ध मूर्तियां चन्द्रशेखर सिंह संग्रहालय, जमुई में प्रदर्शित है जो जमुई जिला में पाल कालीन कला का प्रतिनिधित्व करती है। जमुई जिला के इंदपैगढ़, कागेश्वर, घोष मंजोस मतासी, पिरहिंडा, ककन, अड़सार, महादेव सिमरिया, सबलबीघा, कैयार, गिद्धेश्वर आदि स्थल पुरातात्विक दृष्टिकोण से विशेष महत्वपूर्ण है। जमुई जिला की विरासत की संपन्नता को देखते हुए जमुई में प्रो. डा. श्यामानन्द प्रसाद के अथक प्रयास से 16 मार्च 1983 को एक संग्रहालय की स्थापना की गयी थी जिसकी अधिग्रहण राच्य सरकार के कला संस्कृति एवं युवा विभाग के द्वारा नौ जून 1983 को किया गया। चन्द्रशेखर सिंह संग्रहालय, जमुई बिहार राच्य के संग्रहालयों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह संग्रहालय पालकालीन कलाकृतियों के संग्रह के लिए प्रसिद्ध है। देश-विदेश के दर्शक, शोधकर्ता एवं विद्वान यहां संग्रहित पालकालीन कलकृतियों को देखने और उसका अध्ययन करने आते हैं। चन्द्रशेखर सिंह संग्रहालय जमुई में प्रथम शताब्दी ई. पूर्व से लेकर 12 वीं शताब्दी ई. तक की पाषाण मूर्तियां प्रदर्शित है। पाषाण मूर्तियों में सबसे प्राचीन प्रतिमा नोनगढ़ से प्राप्त यक्षिणी की प्रतिमा है। लाल बलुआ पत्थर से बनी यह आकर्षक है। इस प्रतिमा में केस विन्यास एवं अलंकरण अद्भुत है। इस प्रतिमा के अतिरिक्त इन्दपैगढ़ से प्राप्त धर्मचक्र प्रवर्तन मुद्रा में आसीन बुद्ध, नागकन्या, उमा महेश्वर तथा बटुक भैरव की प्रतिमा उत्कृष्ट कला के प्रतीक है। तो दूसरी ओर कागेश्वर जमुई से प्राप्त विष्णु की प्रतिमा एवं अलंकृत शिलाखंड कलात्मक दृष्टिकोरण से महत्वपूर्ण है। काकन (काकंदी)से प्राप्त सूर्य की प्रतिमा, उमा महेश्वर, अलंकृत शिला एवं नागराज की प्रतिमा पालकालीन कला का अनुपम उदाहरण है। गुप्तकाल (चौथी )शती ई. से पालकाल (10 वीं-12 वीं शती ई. )के मध्य इस क्षेत्र में विकसित मूर्तियां संक्रमण कालीन भारतीय मूर्ति शिल्प परम्परा का प्रतिनिधित्व करती है। नि:संदेह पालकालीन कलाकृतियों का अद्भूत संग्रह संग्रहालय को गौरव प्रदान करता है। सिक्का प्रभाग में मुगल शासक अकबर का सिक्का, शाहआलम द्वितीय का सिक्का एवं मध्य काल के विभिन्न सिक्के ऐतिहासिक दृष्टिकोण से विशेष महत्वपूर्ण है। मृण्मूर्ति प्रभाग के अंतर्गत सबलबीघा एवं दूबेडीह से प्राप्त बौद्ध सीलिंग विशेष रुप से उल्लेखनीय है। दोनों मृतिका सीलिंग पर बुद्ध की आकृति धर्म चर्क प्रवर्तन मुद्रा में उत्कीर्ण है। तथा सीलिंग के निचले भाग में अभिलेख अंकित है। पुरातात्विक दृष्टिकोण से मृत्तिका सीलिंग विशेष महत्वपूर्ण है।

Sunday 2 October 2011

मजदूरों की आस्था से शुरू हुई आराधना

सोनो स्थित दुर्गा मंदिर आस्था, अध्यात्म व सामाजिक सद्भाव का एक ऐसा केन्द्र है जहां पिछले पांच दशकों से दुर्गा पूजा व प्रतिमा स्थापन का कार्य चलता रहा है। रविदास स्वजाति समाज द्वारा प्रतिवर्ष इस मौके पर मंदिर को भव्य तरीके से सजाया संवारा जाता है। कोलकाता से मंगाई गई सामग्रियों से इसे अत्याधुनिक स्वरुप प्रदान किया जाता है।
मूर्ति स्थापन व मंदिर का इतिहास
बात 1930 की है, जब सोनो प्रखंड के सैकड़ों रविदास स्वजाति समाज जीवन यापन हेतु ढाका (बांग्लादेश)में मेहनत करते थे। रात्रि में ये मजदूर एक ही स्थल पर विश्राम करते थे। धार्मिक प्रवृत्ति होने के कारण इनके मन में मां दुर्गा के प्रति अटूट विश्वास जगा और 1942 में इनलोगों ने ढाका में मूर्ति स्थापित कर दुर्गोत्सव मनाना शुरु कर दिया। 1948 तक ढाका में विजयदशमी का पर्व इनलोगों ने मनाया। भारत-पाक विभाजन के बाद ये मजदूर कोलकाता आ गए। 1949 और 1950 में मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर विजयादशमी का पर्व इनलोगों ने कोलकाता में ही मनाया। फिर रविदास स्वजाति समाज के गोपी रविदास, लछु रविदास, विसपत रविदास, रामधारी रविदास, छोटू रविदास तथा यदु रविदास जैसे सक्रिय सदस्यों ने यह निर्णय लिया कि मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापन व दुर्गा पूजा का आयोजन अपनी जन्मभूमि सोनो प्रखंड में ही किया जाए। 1952 में सोनो चौक पर एक छोटी झोपड़ी बनाकर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की गई तब से यहां पूजा का आयोजन होता आ रहा है।
जारी है भव्य मंदिर का निर्माण
दुर्गा पूजा समिति सोनो के संयोजक महेन्द्र दास बताते हैं कि कुशल कारीगरों द्वारा मंदिर का निर्माण कार्य जारी है। भव्य मंदिर निर्माण में मार्बल व टाइल्स लगाए जा रहे हैं। रविदास स्वजाति समाज के कोष से इस मंदिर का निर्माण अत्याधुनिक तरीके से किया जा रहा है।
मेले में सौ से अधिक गांवों की सहभागिता
प्रखंड में सबसे बड़े दुर्गा पूजा मेले का आयोजन सोनो में ही होता है। सोनो-खैरा तथा झाझा प्रखंड के निकटवर्ती गांवों के श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं तथा पूरे भक्तिभाव से मेले का आनंद उठाते हैं।
समिति रखती है व्यवस्था पर नजर
यूं तो मेले में शांति व सौहार्द बनाए रखने के लिए प्रखंड के तमाम बुद्धिजीवी व सक्रिय कार्यकर्ता प्रयासरत रहते हैं लेकिन व्यवस्था पर पूरी मुस्तैदी के साथ नजर रखने वालों में दुर्गापूजा समिति के अध्यक्ष बिनेश्वर दास, सचिव नागेश्वर दास, कोषाध्यक्ष विनय कुमार दास, मुखिया उषा देवी, जिला पार्षद क्रांति देवी एवं सिंघेश्वर दास सहित संयोजक महेन्द्र दास शामिल हैं।