Thursday 5 July 2012

लार्ड मिंटो की सवारी के लिए मंगाई थी फोर्ड परफेक्ट कार


जमुई : राज-राजबाड़ाओं की चर्चा हो तो गिद्धौर रियासत की चर्चा जरुर होती है। अब जब गिद्धौर रियासत के अंतिम राजा प्रताप सिंह का निधन हो गया तो उनसे जुड़ी हर बात यहां के लोगों की जुबां पर आ गई। गिद्धौर में बना मिंटो टावर का निर्माण चंदेल वंश के अंतिम राजा प्रताप सिंह के पिता महाराजा चन्द्रचूड़ सिंह ने अंग्रेज शासक लार्ड मिंटो के सम्मान में करवाई थी। वर्ष 1907 में लार्ड मिंटो गिद्धौर आए थे। उस समय राजा ने गिद्धौर स्टेशन से मिंटो टावर तक लगभग दो किमी कालीन बिछवाई थी। शाही बग्गी पर सवार होकर राजा प्रताप सिंह अपने पिता महाराजा चन्द्रचूड़ सिंह के साथ लार्ड मिंटो की अगुवाई की और टावर तक आए थे। उसी दिन महराजा ने सवारी हेतु फोर्ड की नई परफेक्ट कार मंगवाई थी। जिस पर सवार होकर टावर से राजमहल तक महराजा और लार्ड मिंटो आए थे। राजमहल में खड़ी परफेक्ट कार आज महराजा की यादों को ताजा कर रही थी।
राजनीति को गंदा मानते थे महाराजा
वर्ष 1989 में जनता दल के टिकट पर महाराजा प्रताप सिंह बांका के सांसद चुने गए थे। संसद में शपथ ग्रहण कर जब वे गिद्धौर पहुंचे तो उनके समर्थकों की भारी भीड़ जुटी थी। शशिशेखर सिंह उर्फ इंदू जी महाराजा के परिवार के रिश्ते में भाई तो थे परंतु दोनों का संबंध मित्रवत था। इंदू जी ने जब महाराजा से पूछा कि संसद में जाने कैसा अनुभव रहा। महाराजा प्रताप सिंह ने स्पष्ट कहा था कि मैं बहुत गंदे काम में फंस गया हूं। राजनीति करना हमें सूट नहीं करता।
मांडा राजा के दबाव में लड़े चुनाव
राजनीति को गंदा मानने वाले महाराजा प्रताप सिंह मांडा के राजा सह पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के दबाव में दुबारा चुनाव लड़े थे। वर्ष 1991 में वे चुनाव लड़कर दुबारा सांसद निर्वाचित हुए थे। पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह उनके समधी थे। अपनी बड़ी पुत्री श्रुति की शादी महाराजा ने वीपी सिंह के लड़के से की थी।
विदेशों में ली थी शिक्षा
महराजा प्रताप सिंह के मामा स्पेन में राजदूत थे। उस समय महाराजा ने इंगलैंड में सीनियर कैम्ब्रीज की शिक्षा ग्रहण की थी। बाद में उनकी शिक्षा लाहौर में हुई। देश बंटवारे के बाद वे इलाहाबाद में स्नातक करने लगे। परंतु राजमाता द्वारा रखे गए लोकल गार्जियन को पट्टी पढ़ाते रहे और बीच में ही पढ़ाई छोड़कर चले आए।
एक हाथ से देते थे भैंसे की बलि
जमुई में गिद्धौर का दुर्गा पूजा अपने-आप में काफी नामी है। दुर्गा पूजा की शुरुआत चंदेल राजवंश के द्वारा ही शुरू की गई थी। राज परिवार के द्वारा पूजा किए जाने के बाद ही अन्य कार्रवाही शुरू होती थी। चंदेल वंश के अंतिम राजा प्रताप सिंह मां दुर्गा के भक्त थे। नवरात्र में वे गिद्धौर में अवश्य रहते थे। पूजा के दौरान भैंसे की बलि चढ़ाई जाती थी। महाराजा प्रताप सिंह एक हाथ से भैंसे की बलि मां दुर्गा को चढ़ाते थे। यह सिलसिला वर्षो तक चलता रहा। आठ वर्ष पूर्व राजमहल के पश्चिम स्थित दुर्गा मंदिर को महाराजा प्रताप सिंह ने कमेटी को सुपुर्द कर दिया था। तब से महाराजा भैंसे की बलि नहीं चढ़ाने लगे।
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महाराजा ने कहा था, मैं अब भी नाबालिग हूं
जमुई: लगभग दस वर्ष पूर्व महाराजा ने कहा था कि मैं अब भी नाबालिग हूं। उनकी बड़ी बेटी श्रूति की दो पुत्रियां राजमहल में खेल रही थी। उसी समय उनसे मित्रवत व्यवहार रखने वाले इंदू जी राजमहल पहुंचे। महाराजा आंगन में एक कुर्सी पर बैठे थे। इंदू जी ने खेलते नतिनियों को देखकर कहा कि अब बूढ़े होने का एहसास हो रहा है। महाराजा ने कहा मैं अब भी नाबालिग हूं। बचपन में पिता के नहीं रहने पर मां का कोर्ट आफ वार्ड्स अब पुत्र कोर्ट आफ वार्ड्स लगा रहा है। इसलिए मैं पहले भी नाबालिग था आज भी नाबालिग हूं।
फोटो 05 जमुई -21
कैप्शन- गिद्धौर रियासत का राजमहल
.. और एक युग का हो गया अंत
-सामाजिक न्याय के पक्षधर थे महाराजा प्रताप
जागरण प्रतिनिधि, जमुई : गिद्धौर राज चंदेल वंश के 27वें राजा महाराजा प्रताप सिंह के निधन के साथ ही एक युग का अंत हो गया। महाराजा प्रताप गिद्धौर रियासत के अंतिम महाराजा थे। सामाजिक न्याय के पक्षधर महाराजा स्व. प्रताप सिंह आमजनों के बीच खासे लोकप्रिय थे। महाराजा के साथ बिताए क्षणों को याद कर शशि शेखर सिंह उर्फ इंदू जी बताते हैं कि महाराजा ने समय को जल्द ही पहचान लिया था। वे सार्वजनिक जीवन जीना पसंद करते थे। वर्ष 1989 में पहली बार जब महाराजा बांका से सांसद चुने गए। और संसद सदस्य के रुप में शपथ ग्रहण के बाद गिद्धौर लौटे तो बैचेन दिखे। शायद उन्हें सांसद बनना रास नहीं आया था। यही वजह था कि महाराजा ने अपनी पीड़ा बयां करते हुए कहा था कि मैंने गलत रास्ते को चुन लिया। वैसे वक्त में जब संसद बनना राजनीतिक गलियारे में हर किसी का सपना होता है। यद्यपि जमुई व बांका को झारखंड में शामिल करने की लड़ाई भी महाराजा प्रताप सिंह ने लड़ी। राजमहल के बरामदे पर गुमसुम बैठा वृद्ध कैलू महाराजा के साथ बीताए क्षणों को रुंधे गले से बताते हुए कहा कि गरीबों के मसीहा अब दुनिया में नहीं रहे। जाहिर है कि सार्वजनिक जीवन में महाराजा हरेक के सुख-दुख में भागीदार बनते थे। कैलू का बचपन से लेकर अब तक का समय राजमहल में ही बीता। पुरानी घटनाओं का जिक्र करते हुए वे बताते हैं कि एक वक्त था राजमाता गिरिजा जीवित थीं। राजमहल में हर दिन साढ़े तीन मन चावल बनता था। और आसपास के हर तबके के लोगों को भोजन कराया जाता था। महाराजा प्रताप इस बात का ख्याल रखते थे कि कोई राजमहल से भूखा न जाए। महाराजा प्रताप अपने पीछे एक पुत्र राजकुंवर राजराजेश्वर सिंह व तीन पुत्रियां श्रुति, प्रमीति व प्रकृति को छोड़ गए।
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गुम हो गया गिद्धौर की सल्तनत का सितारा
निज प्रतिनिधि, सोनो : .. और उनकी आखिरी सांस से खामोश है पूरा गिद्धौर। गिद्धौर की सल्तनत का वो सितारा अब यहां की सरजमी पर कभी नहीं दिखेगा। चार सौ वर्षो के इतिहास के संवाहक रहे गिद्धौर का वह राजभवन गुरुवार को सफेद कबूतरों की उड़ान का गवाह रहा। महाराजा प्रताप सिंह के निधन की खबर से आम वो खास लोग ही आहत नहीं हुए बल्कि राजमहल की हर एक ईट मानो प्रताप के बचपन व उनकी जवानी के दिनों को भुलाकर अब उनकी मौत का मातम मना रही हो। अपने दो दशक के राजनीतिक जीवन में प्रताप सिंह ने कभी राजसी ठाट-बाट का प्रदर्शन नहीं किया। सदा सर्वदा उनके चेहरे पर वही सौम्यता व सादगी दिखी जो आखिरी सांसों तक उनके साथ रही। बांका से सांसद चुने जाने के बाद भी उनकी महत्वाकांक्षा अन्य नेताओं से भिन्न थी। वे बांका व जमुई को झारखंड में शामिल कराने की मांग पर अड़े रहे। वर्ष 1999 में उन्होंने इसी मुद्दे पर जसीडीह में रेल चक्का जाम किया था। 30 मई 1997 को उन्होंने अखंड झारखंड पीपुल्स फ्रंट की स्थापना की 30 मई 1998 को फ्रंट के प्रथम स्थापना दिवस पर शिबू सोरेन के साथ केकेएम कालेज जमुई के मैदान में महती जनसभा को संबोधित किया तथा लोगों से अपील की कि वे जमुई और बांका को झारखंड में शामिल किए जाने को ले आंदोलन को तैयार रहे। अखंड झारखंड पीपुल्स फ्रंट के वरीय नेता लुकस सोरेन के अनुसार राजा साहब ने वर्ष 2003 में लछुआड़ से देवघर तक की नंगे पांव पैदल यात्रा कर जमुई-बांका को झारखंड में शामिल करने की मांग रखी थी। झामुमो नेता जयपाल सिंह द्वारा नक्शे में जमुई-बांका को झारखंड का अंग दिखाया था। प्रताप सिंह इसी आंदोलन जारी रखे हुए थे। वर्ष 2005 में उन्होंने राजनीति से सन्यास ले लिया। 

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