Saturday 16 June 2012

10 वर्षो से पिता की सेवा में लगे हैं तीन पुत्र


बरहट : तुम्हें पता है मेरा बचपन.. मेरी शरारतें, मेरा बड़ा होना.. और बहुत कुछ। जब कभी मैं बहकता था तो तुम ही थे जो मुझे संभालते थे। अच्छे-बुरे सभी तरह की चुनौतियों का सामना करने को सिखाया। बताया कि क्या अच्छा, क्या बुरा और हमेशा एक अंगरक्षक की तरह मेरे ढाल बने रहे। वो कोई और नहीं तुम थे मेरे पापा..
पिता और बच्चे का ऐसा भावनात्मक संबंध है जिसका एहसास कर इसकी महत्ता को समझा जा सकता है। पिता एवं बच्चे में एक दूसरे के प्रति समर्पण की भावना तो अनगिनत है। मलयपुर निवासी संजीव कुमार सिंह ने अपने पिता को लीवर दे कर उनकी जान बचाई। यह वाकया है एक हाई-प्रोफाइल परिवार का। पूर्व विधायक सुशील कुमार सिंह के लीवर में तकलीफ हुई तो चिकित्सकों ने लीवर में परेशानी बता दिया। पुत्र मंटू ने तुरंत अपने पिता को लीवर दे कर पिता-पुत्र के संबंधों को आज के जमाने भी जिंदा रखा। इसी गांव के विमल, विभूति और बिट्टू कुमार ने लगभग 10 सालों से बिस्तर पर पड़े अपने पिता की सेवा-सुश्रषा कर हर कोई का दिल जीत लिया। लाइलाज बीमारी से जूझ रहे इनके पिता खुद बिस्तर से उठ पाने में असमर्थ हैं। ऐसे ही मो. मंसूर आर्थिक तंगी के बावजूद अपने सभी बच्चों की पढ़ाई में गतिरोध उत्पन्न नहीं होने दिया। ऐसे ही सकारात्मक अनगिनत उदाहरण इस समाज में हैं लेकिन सिक्के के दूसरे पहलू की तरह कुछ लोगों के लिए पिता के मायने बदल रहे हैं। तभी तो शहरों में वृद्धाश्रम में बढ़ोतरी हुई है, तो सभी बाजारों व ट्रेनों में दूसरे की दया पाने हेतु घुमते वृद्ध भी अक्सर दिखाई पड़ते हैं। जिस पिता ने बच्चों को दुनियां में जीने का गुर सिखाया उसी पिता को ढलती उम्र में बेसहारा छोड़ देना सामाजिक विकृति को दर्शाता है। खुद भूखे रह बच्चों को खिलाने वाले को जीवन के अंतिम दौर तक नहीं छोड़ने तथा हर परिस्थिति में सहयोग लेने का अपने-आप से वादा ही फादर डे पर अपने पिता को सर्वश्रेष्ठ भेंट होगा और जिन्दगी में सिर्फ प्यार ही प्यार होगा।  

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