Tuesday 16 October 2012

जर्मनी में प्रतिभा का लोहा मनवा रही गांव की बिटिया


संजय कुमार सिंह, जमुई:
आदमी सोच तो ले उसका इरादा क्या है.. गाने के बोल को साकार किया है लक्ष्मीपुर प्रखंड मटिया गांव निवासी डा. ओम प्रकाश की बेटी अंशु भारती ने। गांव की यह बिटिया विदेश तक जा पहुंची। ग्रामीण परिवेश में पलने बढ़ने के बावजूद अपनी कड़ी मेहनत व लगन के कारण आज वह भारत की आइटी सिटी बैंगलूर में स्विटजरलैंड की कंपनी स्वीसरी में मैनेजर के पद पर कार्यरत है और इसी कंपनी की ओर से वह प्रशिक्षण के लिए जर्मनी गई है। इतना ही नहीं आज इस ग्रामीण बाला को विदेशी कंपनियों की ओर से विदेश में कार्य करने के ढ़ेरो ऑफर आ रहे हैं। बकौल अंशु सात समुंदर पार रह कर वह अपने पति व परिवार के अन्य सदस्यों की सेवा नहीं कर सकती। साथ ही वह भारत में रहकर भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाकर अपने देश की सेवा करना चाहती है।
पढ़ाई से दूर रहा बचपन
अपने बचपन काल में अंशु किताब व कॉपियों से काफी दूर भागती थी। जिसे लेकर उसके माता-पिता काफी चिंतित रहते थे। परंतु उन्हें क्या पता था। उसी अंशु में विलक्षण प्रतिभा छुपी हुई है।
संघर्ष की दास्तान
वर्ष 2001 से शुरू हुई अंशु के संघर्ष की कहानी। मटिया स्थित चंद्रशेखर सिंह उच्च विद्यालय से हाईस्कूल तक की शिक्षा लेने के बाद वह राजस्थान स्थित वनस्थली विद्यापीठ से उच्च शिक्षा प्राप्त कर आइएएस बनना चाहती थी। परंतु परिवार वाले अपनी चहेती बिटिया को पहली बार इतनी दूर भेजना नहीं चाहते थे। अंतत: उसका नामांकन पटना स्थित विश्वविद्यालय के महिला कालेज में करा दिया गया। उक्त कालेज में पढ़ाई का माध्यम पूर्णत: अंग्रेजी था। जिसका अनुसरण करना अंशु के लिए काफी कठिन था। साथ ही लड़कियों के निजी होस्टल में मेस के भोजन से अंशु का स्वास्थ्य बिगड़ गया। इन दोनों ही परिस्थितियों से घबरा कर अंशु के परिवार वाले उसे वापस गांव बुला लेना चाहते थे। परंतु उस बाला ने हार नहीं मानी। उसने अपनी प्रतिभा के बल पर जल्द ही कालेज प्रशासन को अपनी ताकत का एहसास करा दिया। वह हिंदी भाषी बाला जल्द ही प्राचार्य सहित कई प्रध्यापिकाओं की चहेती बन गई।
क्यों बदला विचार
अंशु आइएसएस बनना चाहती थी परंतु उसे लगा कि शायद ग्रामीण परिवेश से आने के कारण उसके परिवार वाले उसे उसकी तैयारी हेतु अधिक समय नहीें दे सकेंगे। तब उसने अपना विचार बदल दिया और उक्त कालेज से डिग्री तक की शिक्षा लेने के बाद उसने नई दिल्ली स्थित जर्मन संस्थान मैक्स मुलर भवन से जर्मन भाषा का तीन वर्षीय कोर्स किया। जिस अंशु को कभी अंग्रेजी से घबराहट होती थी आज वह जर्मन सहित कई विदेशी भाषाओं को धड़ल्ले से बोलती है। 

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