गिद्धौर : चार शताब्दी पूर्व स्थापित गिद्धौर का दुर्गा मंदिर बिहार
में पूजा के लिए सर्वप्रतिष्ठित स्थल माना जाता है। यहां पर नवरात्रि के
समयावधि में हर रोज हजारों श्रद्धालु अनंत श्रद्धा व अखंड विश्वास के साथ
माता दुर्गा की प्रतिमा को निहारते हुए प्रार्थना करते हुए नजर आते हैं।
गिद्धौर राज रियासत के तत्कालीन राजा पूरनमल ने 1566 में अलीगढ़ से
स्थापत्य से जुड़े राज मिस्त्रियों को बुलाकर गिद्धौर स्थित दुर्गा मंदिर का
निर्माण विधिवत करवाया था। तब से जैना गमों में चर्चित पवित्र नदी
उज्जुवालिया अब उलाई नाम से प्रसिद्ध तथा नागिन नदी के संगम पर बने इस
मंदिर में दुर्गा की पूजा-अर्चना होती आ रही है। गंगा और यमुना सरीखी इन दो
पवित्र नदियों में सरस्वती स्वरुपणी दुधियाजोर मिश्रित होती है। जिसे आज
झाझा रेलवे के पूर्व सिंगनल के पास देखा जा सकता है। जैनागमों में आए वर्णन
के अनुसार इस संगम में स्नान करने के उपरांत दुर्गा मंदिर में हरिवंश
पुराण का श्रवण करने से नि:संतान दंपती को गुणवान पुत्र रत्न की प्राप्ति
होती है। दशहरा के अवसर पर यहां के राज्याश्रित मेला में कभी मल्ल युद्ध
का अभ्यास, तीरंदाजी, कवि सम्मेलन, नृत्य प्रतियोगिता का आयोजन हुआ करता
था। ऐसा माना जाता है कि उन दिनों गिद्धौर महाराजा आम दर्शन के लिए उपस्थित
होते थे। दूसरी विशेषता यह थी कि इस दशहरा पर तत्कालीन ब्रिटिश राज्य के
बड़े-बड़े अधिकारी भी शामिल होते थे। जिसमें बंगाल के लेफ्टिनेंट गर्वनर
एडेन, एलेक्जेंडर मैकेन्जी, एंड्रफ फ्रेज एडवर्ड बेकर जैसे शासक गिद्धौर
में दशहरा के अवसर पर महाराजा के नियंत्रण पर आते थे। जब राजाश्रित इस मेले
को चंदेल वंश के उत्तराधिकारी ने जनाश्रित घोषित कर दिया तो दशहरा के
पुनीत अवसर पर सांस्कृति महोत्सव को पुनर्जाग्रत करने का कार्य पूर्व
केंद्रीय मंत्री स्व. दिग्विजय सिंह के द्वारा किया गया था लेकिन उनके
आकस्मिक निधन के बाद गिद्धौर निवासी व बिहार सरकार के भवन निर्माण मंत्री
दामोदर रावत ने गिद्धौर के ऐतिहासिक धरती पर पुन: सांस्कृतिक महोत्सव को
आयोजित कराने का बीड़ा उठाया गया है।
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