Tuesday 3 July 2012

कम वर्षापात में भी अब उपजेंगे खेतों में सोना


बरहट (जमुई) निज प्रतिनिधि: रैन शेड जमुई जिले में मानसून ने कई बार किसानों को छला है। कभी धान का बिचड़ा डालने के पूर्व तो कई बार बिचड़ा डालने के बाद मानसून ने दगा दिया है। ऐसे समय में कृषि विज्ञान केंद्र खादीग्राम ने सीरियल सिस्टम इनीशिएटिव फार साउथ एशिया (सीजा) परियोजना के तहत धान के फसल के लिए एक नई तकनीक का इजाद किया जिसमें 25-30 प्रतिशत पानी की बचत होगी। जिससे कम वर्षापात में भी अब खेतों में सोना उपजेगी। विज्ञान केंद्र ने नई तकनीक से केंद्र प्रक्षेत्र में कोमल 101, एराईज 6444, नाटा मंसूरी एवं संकर एराइज धान के बिचड़े को तैयार किया है।
क्या है नई तकनीक
नई तकनीक बहुत ही सरल है। किसान चाहे तो इस विधि द्वारा बिचड़े को घर के आंगन में भी तैयार कर सकता है। नई तकनीक में नेट पर धान की नर्सरी तैयार कर इसकी सीधी रोपाई मशीन द्वारा खेतों में की जाती है।
कैसे तैयार होती है नर्सरी
इसके लिए 20 मीटर लंबा और 1.2 मीटर चौड़ा बेड तैयार किया जाता है। 8-10 सेंटीमीटर ऊंची इस बेड पर उसी से आकार के पालिथीन मे छोटे-छोटे छिद्र बना बेड पर बिछा दिया जाता है। उसके बार पालिथीन सीट के ऊपर आधा इंच मोटा लोहे या लकड़ी का फ्रेम चारो तरफ से बैठाया जाता है। इस फ्रेम के अंदर मिटटी व बर्मी कम्पोस्ट 4:1 अनुपात में मिलाकर बिछाया जाता है। इस मिश्रण के ऊपर 12 किलो धान के फूले बीज को फैला फुहारे से सिंचाई की जाती है। तीन दिन बाद बेड के किनारे बने नाले से इसकी सिंचाई होती है। इस प्रकार 16 दिन में बिचड़ा रोपाई के लिए तैयार हो जाता है। जिससे एक एकड़ खेत की बोआई की जा सकती है।
होती है अधिक उपज
विज्ञान केंद्र खादीग्राम के प्रभारी कार्यक्रम समन्वयक ब्रजेश कुमार की माने तो यह नई तकनीक किसानों के लिए काफी लाभप्रद है। उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष इस विधि का परीक्षण कृषि विज्ञान केंद्र के प्रक्षेत्र में किया गया जिसमें 54.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से उपज प्राप्त हुआ। इस वर्ष जमुई व लखीसराय जिले के कई गांवों में इस विधि का परीक्षण किया जाऐगा।
कम आता है खर्च
इस विधि द्वारा खेती पर कम खर्च आता है। पानी के बचत के साथ-साथ रोपाई में लगने वाले मजदूरों की बचत होती है। साथ ही लाइन में रोपाई होने से निकाई व अन्य सस्य क्रिया भी आसानी से संपन्न हो जाते हैं। सीसा परियोजना प्रभारी प्रमोद कुमार सिंह ने बताया कि इस विधि में बिचड़ा से धान की झड़ाई तक का खर्च 13600 प्रति हेक्टेयर आता है। बहरहाल नई तकनीक जमुई जैसे रैनशेड इलाके में किसानों के लिए फायदेमंद साबित होगा और जिले के कृषि को एक नई दिशा की ओर अग्रसर करेगी।  

No comments:

Post a Comment