Sunday 22 July 2012

रहमत और बरकत का रास्ता खोलता है रमजान


जागरण प्रतिनिधि, जमुई : पवित्र रमजान का महीना प्रारंभ हो चुका है। मुस्लिम सम्प्रदाय के लोग अल्लाह की इबादत में मशगूल हैं। रोजेदार पांचों वक्त की नमाज अदा कर रहे हैं। शाम में अजान होने के बाद इफ्तार शुरु हो जाती है। ऐसी मान्यता है कि रमजान के महीने में ईश्वरीय रहमत के दरवाजे खुल जाते हैं। शुक्रवार की रात्रि चांद के दीदार के साथ ही पवित्र रमजान का महीना शुरु हो गया था। मुसलमान भाई मानते हैं कि सिर्फ भूखा प्यासा रहना ही रोजा नहीं है। रोजे का मतलब बुरी बातों की ओर जाना तो दूर उसके बारे में सोचना भी गुनाह होता है। रमजान में तरावीह पढ़ी जाती है। तरावीह की नमाज 20 रेकअत की होती है जिसे पूरे माह लोग पढ़ते हैं। शहर के मुसलमान कुछ भाई रमजान पर अपनी प्रतिक्रिया कुछ यूं दिया। मो. जैनूल कहते हैं कि रमजान का महीना अल्लाह की इबादत के साथ-साथ रहमत और बरकत के रास्ते भी खोलता है। इस महीने में गलत कार्यो से लोग दूर होते हैं। मो. शमीम खां कहते हैं कि रमजान का रोजा सबों का फर्ज है। रोजा हमें हर बुलाईयों से दूर कर अल्लाह के करीब लाता है। वे कहते हैं कि रोजा हमें अपने मकसद और फर्ज को सिखलाता है। मो. इश्तलाक कहते हैं कि रमजान में इलाकों की रौनक बढ़ जाती है। सेहरी से इफ्तार तक का समय हमें उन गरीबों की याद दिलाता है जो भूख का एहसास करते हैं। इस एहसास को बहुत करीब से अनुभव करना सिखाता है। मो. हरुद्दीन रशीद कहते हैं कि रमजान हमें तप सिखलाता है। रोजा आत्मा में अच्छाई व सदभावना को जगाने की प्रकिया है। रोजा के दौरान हर इंद्रियों को वश में रखना जरुरी है। मो. जमशेद अंसारी कहते हैं कि रमजान की सबसे बड़ी नेअमत कुरान है। रमजान में ही शव-एक क्रद वाली रात आती है जो बेहतरी का होता है। उस रात अल्लाह रहमतों की बरसात करते हैं

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