Thursday 15 December 2016

कचरे में जिंदगी ढूंढ रहे जमुई के मासूम बच्चे


जमुई। आज भी कई इलाकों में छोटे-छोटे बच्चे कचरों के ढेर में ईंट के भट्ठे, गैराज और होटलो में जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं। अपना पेट पाल रहे हैं साथ-साथ अपने परिवार को भी रोटी मुहैया करा रहे हैं। इन मासूम बच्चों से पढ़ाई नहीं करने और स्कूल नहीं जाने की बात पूछी गई तो गरीबी इसका मूल कारण है। इनके घर-परिवार में माता-पिता या तो ईंट भट्ठे पर काम करते हैं या फिर रिक्शा-ठेला चलाकर दो जून की रोटी कमाते हैं। किसी प्रकार परिवार चलता है। रहन-सहन, खान-पान के कारण परिवार पर हमेशा बीमारी का खतरा रहता है। ऐसे में आज भी ईंट-भट्ठे होटलों और गैरेजों में उधारी चुकाने के लिए काम करते हैं।
सहायता के लिए पूछने पर सरकार की योजनाओं, जनप्रतिनिधि, जिला प्रशासन के किसी भी विभाग की इनको जानकारी नहीं जो इन मासूम बच्चों को मदद कर सकता हो। मामूली राशि का लोभ देकर इन मासूम नौनिहालों से श्रम करवाते हैं। बच्चों के अनुसार पिछले दिनों से हाड़ कंपा देने वाली ठंड में हमलोगों का काम बढ़ा है। सुबह अंधेरे में उठकर जलावन के लिए लकड़िया चुनकर लाते हैं। फिर कचरा चुनने और अन्य कामों में लग जाते हैं। पूछने पर बच्चे बताते हैं कि जलावन या अन्य कोई सहायता अभी जिला प्रशासन से नहीं मिला है। हा, घर-घर कचरा चुनने का एक फायदा है। घर वाले हालत पर तरस खाकर कुछ खाने को देते हैं और अपने बच्चों का गर्म कपड़ा भी हमलोगों को कई परिवारों ने दिया है।

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