Wednesday 26 October 2011

एतिहासिक धरोहर से परिपूर्ण है जमुई

जमुई, जागरण प्रतिनिधि : प्राचीन अंग जनपद में स्थित जमुई जिला का संपूर्ण क्षेत्र पुरातात्विक एवं सांस्कृतिक सम्पदा से परिपूर्ण है। प्राप्त पुरातात्विक अवशेष उसके गौरवमय अतीत का स्मरण कराते हैं। जमुई की प्राचीनता महाभारत काल से ही प्रारंभ होती है। महाभारत में जमुई को गिद्धौर प्रदेश को पवित्र शैवतीर्थ कहा गया है। जमुई जिला अंतर्गत काकंदी नामक ग्राम जैन धर्म के नवें तीर्थकर सुविधिनाथ के जन्म स्थान, दीक्षा एवं ज्ञान प्राप्ति स्थल के रुप में उल्लिखित है। जमुई जिला अंतर्गत लछुआड़ के निकट स्थित क्षत्रिय कुंडग्राम एक मान्यता के अनुसार महावीर का जन्मस्थान कहा जाता है। जमुई जिला का इंदपैगढ़ पाल शासकों का कार्यस्थल होने का प्रमाण लिए गौरवपूर्ण अध्याय की कथा कह रहा है। इन्दपैगढ़ से प्राप्त बौद्ध मूर्तियां चन्द्रशेखर सिंह संग्रहालय, जमुई में प्रदर्शित है जो जमुई जिला में पाल कालीन कला का प्रतिनिधित्व करती है। जमुई जिला के इंदपैगढ़, कागेश्वर, घोष मंजोस मतासी, पिरहिंडा, ककन, अड़सार, महादेव सिमरिया, सबलबीघा, कैयार, गिद्धेश्वर आदि स्थल पुरातात्विक दृष्टिकोण से विशेष महत्वपूर्ण है। जमुई जिला की विरासत की संपन्नता को देखते हुए जमुई में प्रो. डा. श्यामानन्द प्रसाद के अथक प्रयास से 16 मार्च 1983 को एक संग्रहालय की स्थापना की गयी थी जिसकी अधिग्रहण राच्य सरकार के कला संस्कृति एवं युवा विभाग के द्वारा नौ जून 1983 को किया गया। चन्द्रशेखर सिंह संग्रहालय, जमुई बिहार राच्य के संग्रहालयों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह संग्रहालय पालकालीन कलाकृतियों के संग्रह के लिए प्रसिद्ध है। देश-विदेश के दर्शक, शोधकर्ता एवं विद्वान यहां संग्रहित पालकालीन कलकृतियों को देखने और उसका अध्ययन करने आते हैं। चन्द्रशेखर सिंह संग्रहालय जमुई में प्रथम शताब्दी ई. पूर्व से लेकर 12 वीं शताब्दी ई. तक की पाषाण मूर्तियां प्रदर्शित है। पाषाण मूर्तियों में सबसे प्राचीन प्रतिमा नोनगढ़ से प्राप्त यक्षिणी की प्रतिमा है। लाल बलुआ पत्थर से बनी यह आकर्षक है। इस प्रतिमा में केस विन्यास एवं अलंकरण अद्भुत है। इस प्रतिमा के अतिरिक्त इन्दपैगढ़ से प्राप्त धर्मचक्र प्रवर्तन मुद्रा में आसीन बुद्ध, नागकन्या, उमा महेश्वर तथा बटुक भैरव की प्रतिमा उत्कृष्ट कला के प्रतीक है। तो दूसरी ओर कागेश्वर जमुई से प्राप्त विष्णु की प्रतिमा एवं अलंकृत शिलाखंड कलात्मक दृष्टिकोरण से महत्वपूर्ण है। काकन (काकंदी)से प्राप्त सूर्य की प्रतिमा, उमा महेश्वर, अलंकृत शिला एवं नागराज की प्रतिमा पालकालीन कला का अनुपम उदाहरण है। गुप्तकाल (चौथी )शती ई. से पालकाल (10 वीं-12 वीं शती ई. )के मध्य इस क्षेत्र में विकसित मूर्तियां संक्रमण कालीन भारतीय मूर्ति शिल्प परम्परा का प्रतिनिधित्व करती है। नि:संदेह पालकालीन कलाकृतियों का अद्भूत संग्रह संग्रहालय को गौरव प्रदान करता है। सिक्का प्रभाग में मुगल शासक अकबर का सिक्का, शाहआलम द्वितीय का सिक्का एवं मध्य काल के विभिन्न सिक्के ऐतिहासिक दृष्टिकोण से विशेष महत्वपूर्ण है। मृण्मूर्ति प्रभाग के अंतर्गत सबलबीघा एवं दूबेडीह से प्राप्त बौद्ध सीलिंग विशेष रुप से उल्लेखनीय है। दोनों मृतिका सीलिंग पर बुद्ध की आकृति धर्म चर्क प्रवर्तन मुद्रा में उत्कीर्ण है। तथा सीलिंग के निचले भाग में अभिलेख अंकित है। पुरातात्विक दृष्टिकोण से मृत्तिका सीलिंग विशेष महत्वपूर्ण है।

No comments:

Post a Comment